करुना करत मँदोदरि रानी -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

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राग मारू


 
करुना करत मँदोदरि रानी।
चौहद सहस सुंदरी उमहीं, उठै न कंत महा अभिमानी।
बार-बार बरज्यौ, नहिं मान्यौ जनक-सुता तैं कत धर आनी।
ये जगदीस ईस कमलापति, सीता तिय करि तैं कत जानी?
लीन्हे गोद विभीषन रोवत, कुल कलंक ऐसी मति ठानी।
चोरी करी, राजहूँ खोयौ, अल्प मृत्यु तब आइ तुलानी।
कुंभकरन समुझाइ रहे पचि, दै सीता, मिलि सारँगपानी।
सूर सबनि कौ कह्यौ न मान्यौ, त्यौं खोई अपनी रजधानी॥160॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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