लछिमन, रचौ हुतासन भाई।
यह सुनि हनूमान दुख पायौ, मोपै लख्यौ न जाई।
आसन एक हुतासन बैठी, ज्यौं कुंदन-अरुनाई।
जैसैं रवि इक पल धन भीतर बिनु मारुत दुरि जाई।
लै उछंग उपसंग हुतासन, निहकलंक रघुराई!
लई बिमान चढ़ाई जानकी, कोटि मदन छबि छाई।
दसरथ कह्यौ देवहू भाष्यौ, ब्योम बिमान टिकाई।
सिया राम लै चले अवध कौं, सूरदास बलि जाई॥162॥