यह सुनि चकित भईं ब्रज-बाला।
तरुनी सब आपुस मैं बूझति, कहा कहत गोपाला।।
कहा तुरंग, कहाँ गज केहरि, हंस सरोवर सुनियै।
कंचन-कलस गढ़ाए कब हम, देखौ धौं यह गुनियै।।
कोकिल, कीर, कपोत बननि मैं, मृग, खंजन इक संग।
तिनकौ दान लेत हैं हमसौं, देखहु इनकौ रंग।।
चंदन, चँवर, सुगंध बतावत, कहाँ हमारै पास।
सूर स्याम जो ऐसे दानी, देखि लेहु चहुँ पास।।1550।।