भूलि रहे तुम कहाँ कन्हाई।
तिनकौं नाम लेत हम आगैं, सपनेहूँ द्दष्टि न आई।।
हय बर, गय बर, सिंह, हंस बर खग मृग कहँ हम लीन्हे।
सायक, धनुष, चक्र सुनि चक्रित, चमर न देखे चीन्हे।।
चंदन और सुगंध कहत हौ, कंचन-कलस बतावहु।
सूर स्याम ये सब जो ह्वैहैं, तबहिं दान तुम पावहु।।1551।।