बिरही कैसै जिऐं बिचारे।
ज्यौ घायल गहि फिरि फिर बूझत, काम बान के मारे।।
नाहिन नोद परति निसिबासर, नैन नींद भरि ढारे।
मानहि नही मनैयै कैसै, बहुत मनावत हारे।।
ज्वाल सकल अग़नि तै नखसिख, जैसै दावा जारे।
कठ कपोल अधर कुम्हिलाने, भए भँवर तै कारे।।
जोग जज्ञ तीरथ ब्रत तुमही, लोक वेद तै न्यारे।
सब सौ तोरि तुमहिं चित बाँध्यौ, अब ह्वै रहे तुम्हारे।।
डगमगात तन धरत न धीरज, डोलत दुखित दुखारे।
‘सूरजदास’ कहत कर जोरे, दरसन देहु पियारे।।