ऊधौ बहुरौ ह्वैहै रास -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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ऊधौ बहुरौ ह्वैहै रास।
नंदनँदन सौ ऐसी कहियै, तुम जु रहत उन पास।।
सरद रास जब बेनु बजायौ, थकित चंद्र आयास।
एते दिवस जात किन जाने, बीतन लागे मास।।
'सूरदास' प्रभु अवधि बदि गए, वह दरसन की आस।
मोहन बिन इहिं धिक जीवन की अजौ रहत घट स्वास।।
लाल कल्यान बेगि ब्रज आवहु, सावन भादौ ए दोऊ मास।
बहुरौ तौ मधुबनहिं जाइऐ जब कुआँर फूलहिंगे कास।।
कृपा करहु तौ सरदहुँ रहिऐ, जल उज्ज्वल औ अमल अकास।
'सूरदास' प्रभु यहै चाँदनी, बेनु बजाइ खेलिवौ रास।। 200 ।।

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