बिप्र भवन रथ चढ्यौ, चलत तब बार न लाई ।
छप्पन कोटिन मध्य, राजही जादवराई ।।
छाँड़ि सकुच पाती दई, तब पूछी कुसलात ।
जानि चीन्ह पहिचानि मन, फूले अग न मात ।।
आपुन झारी माँगि बिप्र के चरन पखारे ।
इती दूरि स्रम कियौ भए द्विजराज दुखारे ।।
पाती बाँचि न आवई, माँग्यौ तुरत विमान ।
लोचन भरि भरि आवही, मानहु कर जलपान ।।
लीन्हौ बिप्र चढाइ बोलि बल सौ कहि सारा ।
सकल सभा जिय जानि कसे साजे हथियारा ।।