बिप्र भवन रथ चढ्यौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैतश्री
रुक्मिणीविवाह की दूसरी लीला



बिप्र भवन रथ चढ्यौ, चलत तब बार न लाई ।
छप्पन कोटिन मध्य, राजही जादवराई ।।

छाँड़ि सकुच पाती दई, तब पूछी कुसलात ।
जानि चीन्ह पहिचानि मन, फूले अग न मात ।।

आपुन झारी माँगि बिप्र के चरन पखारे ।
इती दूरि स्रम कियौ भए द्विजराज दुखारे ।।

पाती बाँचि न आवई, माँग्यौ तुरत विमान ।
लोचन भरि भरि आवही, मानहु कर जलपान ।।

लीन्हौ बिप्र चढाइ बोलि बल सौ कहि सारा ।
सकल सभा जिय जानि कसे साजे हथियारा ।।

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