भुवन चतुर्दस राज सकल -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग जैतश्री
रुक्मिणी विवाह की दूसरी लीला


भुवन चतुर्दस राज सकल 'सूरदास' नर मुनि देवा ।
कर जोरे ससि सूर पवन पानी करै सेवा ।।
अबहि ओर की और होति कछु लागै बारा ।
तातै पाती लिखी तुमहि मै प्रान अधारा ।।

कै जदुपति लै आवहु, करौ प्रान लगि घाउ ।
बाजै सखहि जानि हौ, आए जादवराउ ।।

कटै भूख औ नीद जीव हौ जानति नाही ।
अनदेखे वै नैन लगे लोचन पथ माही ।।
जो माँगौ सो देउँ लेहु माधौ सँग आए ।
कोटि जज्ञ फल होइ पिता उन दरसन पाए ।।

रोइ रुकमिनी यौ कह्यौ धरौ पानि मैं माथ ।
यह पाती लै दीजियौ, प्राननाथ कै हाथ ।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः