प्रमुदा अति हरषित भई -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


प्रमुदा अति हरषित भई, सुनि बात सखी की।
रोम रोम पुलकित भई, उपजी रुचि ही की।।
कहति अबहिं ह्याँ तै गए, नंदसुवन कन्हाई।
चरित कहा उनके कहौ, मुख कह्यौ न जाई।।
साँझ गए कहि आइहै, मोसौ री आली।
अनत बिरमि कतहूँ रहे, बहुनायक ख्याली।।
रैनि रही मैं जागि कै, भोरहि उठि आए।
मान कियौ रिस पाइ कै, पल माहिं छुड़ाए।।
अगनित गुन प्रभु 'सूर' के, कहि तोहि सुनाऊँ।
अबहिं चरित करिकै गए, तेई गुन गाऊँ।।2727।।

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