आजु सखी जमुनामग मोहन, मोहिं छँदी छँद लाइ।
को तू आहि, कौन की बनिता, बात एक सुनि आइ।।
बिहँसि कह्यौ मोहिं स्याम पठायौ, सुनत बिरह गति भूली।
रति-जल-जलज हियौ हुलस्यौ, मनु पुलक पाँखुरी फूली।।
जानि कुमार गह्यौ कर सौ कर, ल्याई भवन बुलाइ।
नैन मूँदि, अचल गहि डारयौ, मैं माधौ मिलि आइ।।
छैल छुयौ उर, बदन बिलोक्यौ, सकुचि रही मुसुकाइ।
छाँड़हु 'सूर' स्याम यह तुम्हरी, आवनि जानि न जाइ।।2728।।