अब तू कहा दुरावैगी।
मोहि कहति नहिं, काहि कहैगी, कब लौं बात लुकावैगी।।
मोसी और कौन प्रिय तेरै, जासौ प्रेम जनावैगी।
मेरी सौ, उनकी सौ तोकौ, कहा दुराऐ पावैगी।।
औरनि सी मोहूँ कौ जानति, मो तै बहुरि रमावैगी।
'सूर' स्याम तोहि बहुरि मिलैहौ, आखिर तौ प्रगटावैगी।।2726।।