प्रभु हौ सब पतितनि को टीकौ।
और पतित सब दिवस चारि कै, हौ तौ जनमत ही कौ।
अधिक अजामिल गनिका तारी और पूतना ही कौं।
मोहिं छाँडि तुम ओर उधारे मिटै सूल क्यौं जी कौ।
काउ न समरथ अध करिथे कौं खेचि कहत हौं लीकौ।
मरियत लाज सूर पतितनि मैं, मोहूँ तै कौ नीकौ।।।138।।