हो तौ पतित-सिरोमनि माधौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग



हों तौ पतित-सिरोमनि माधौ।
अजामील बातनि हीं तारयौ, हुतौ जु मौतैं आधौ।
कै प्रभु हार मान कै बैठौ कै अबहीं निस्‍तारौ।
सूर पतित कौं और ठौर नहिं, है हरि-नाम सहारौ।।।139।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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