देखो माई दधि-सुत मैं दधि जात।
एक अचंभौ देखि सखी री, रिपु मैं रिपु जु समात।
दधि पर कीर, कीर पर पंकज, पंकज के द्वै पात।
यह सोभा देखत पसु-पालक, फूले अँग न समात।
बारंबार बिलोकि सोचि चित, नंद महर मुसुक्यात।
यहै ध्यान मनि आनि स्याम कौ, सूरदास बलि जात।।172।।