तब तैं गोबिंद क्‍यौं न सँभारे -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सोरठ





तब तैं गोबिंद क्‍यौं न सँभारे ?
भूमि परे तैं सोचन लागे, महा कठिन दुख भारे।
अपनौ पिंड पोषिबैं कारन, कोटि सहज जिय मारे।
इन पापनि तैं क्‍यौं उबरौगे, दामनगीर, तुम्‍हारे।
आपु लोभ-लालच कैं कारन, पापनि तैं, नहिं हारे।
सूरदास जम कंठ गहे तें, निकसत प्रान दुखारे।।334।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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