रे मन मूरख जनम गँवायौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग धनाश्री





रे मन मूरख, जनम गँवायौ।
करि अभिमान बिषय-रस गीध्‍यौ स्‍याम-सरन नहिं आयौ।
यह संसार सुबा-सेमर ज्‍यौं, सुंदर देखि लुभायौ।
चाखन लाग्‍यौ रुई गई उड़ि हाथ कछू नहि आयौ।
कहा होत अब के पछिताएँ पहलैं पाप कमायौ।
कहत सूर भगवंत-भजन बिनु, सिर धुनि-धुनि पछितायौ।।335।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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