जीत्यौ जरासंध बँदि छोरी।
जुगल कपाट बिदारि बाट करि, जतनहि तै सँधि जोरी।।
विषम जाल बल बाँधि ब्याध लौ, नृप खग अवलि बटोरी।
जनु सु अहेरी हति जादौपति, गुहा पीजरी तोरी।।
निकसे देत असीस एक मुख, गावत कीरति गोरी।
जनु उड़ि चले बिहंगम के गन, कटे कठिन पग डोरी।।
मिटि गए कलह कलेस कुलाहल, जनु बरि बीती होरी।
'सूरदास' प्रभु अगनित महिमा, जो कछु कहौ सो थोरी।। 4216।।