जात्यौ जीत्यौ हो जादवपति रिपु दल मारयौ।
तऊ न तजत हठ परम मुगुध सठ, ना जानै कुबुद्धि जड़ को बाहु विदारयौ।
खर वरि मूठि उठि खेलत बालक सुठि आनत ईधन दौरि दौरि दिसि चारयौ।
ऐसै यह नृप नर सकल सकेलि घर, कठिन हृदय करि सब कुल जारयौ।।
कह्यौ न काहू कौ करै बहुरि बहुरि अरै, एकहि पाइ दै पग पकरि पछारयौ।
‘सूर’ स्वामी अति रिस भीम की भुजा कै मिस, व्यौतत वसन जिमि तासु तन फारयौ।। 4217।।