जागहु हो ब्रजराज हरी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल



जागहु हो ब्रजराज हरी।
लै मुरली आंगन ह्वै देखौ, दिनमनि उदित भए द्विधरी।
गो-सुत गोठ बँधन सब लागे, गो-दोहन की जून टरी।
मधुर बचन कहि सुतहिं जगावति, जननि जसोदा पास खरी।
भोर भयौ दधि-मथन होत, सब ग्‍वाल सखनि की हाँक परी।
सूरदास प्रभु दरसन कारन, नींद छुडाई चरन धरी।।404।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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