जसुदा यह न बूझि कौ काम -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली



जसुदा यह न बूझि कौ काम।
कमलनैन को भुजा देखि धौं तैं बाँधे हैं दाम।
पुत्रह तैं प्‍यारी कोउ है री, कुल-दीपक मनि-धाम।
हरि पर वारि डारि सब तन, मन, धन गोरस अरु ग्राम।
देखियत कमल बदन कुम्हिलानी, तू निरमोही बाम।
बैठी है मंदिर सुख छहियाँ, सुत दुख पावत धाम।
येई हैं सब ब्रज के जीवन सुख पाती लिऐं नाम।
सूरदास प्रभु भक्‍तनि कैं बस यह ठानी घनश्‍याम।।367।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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