ऐसी रिस तोकौं नँदरानी।
भली बुद्धि तेरैं जिय उपजी, बड़ी बैस अब भई सयानी।
ढोटा एक भयौ कैसैहु करि, कौन-कौन करवर बिधि मानी।
क्रम-क्रम करि अब लौं उवरयौ है, ताकौं मारि पितर दै पानी
को निरदई रहै तेरैं घर, को तेरैं सँग बैठै आनी।
सुनहु सूर कहि-कहि पचिहारीं, जुवती चलीं धरनि बिरुझानी।।368।।