कान्‍ह सौं आवत क्‍यौंऽब रिसात -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग नट



कान्‍ह सौं आवत क्‍यौंऽब रिसात।
लै लै लकुट कठिन कर अपनैं परसत कोमल गात।
देखत आँसू गिरत नैन तैं यौं सोभित ढरि जात।
मुक्‍ता मनौ चुगत खग खंजन, चोंच पुटी न समात।
डरनि लोल डोलत है इहिं बिधि, निरखि भ्रुवनि सुनि बात।
मानौ सूर सकात सरासन, उड़िबे कौं अकुलात।।366।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः