कान्ह सौं आवत क्यौंऽब रिसात।
लै लै लकुट कठिन कर अपनैं परसत कोमल गात।
देखत आँसू गिरत नैन तैं यौं सोभित ढरि जात।
मुक्ता मनौ चुगत खग खंजन, चोंच पुटी न समात।
डरनि लोल डोलत है इहिं बिधि, निरखि भ्रुवनि सुनि बात।
मानौ सूर सकात सरासन, उड़िबे कौं अकुलात।।366।।