जनम तौ बादिहि गयौ सिराइ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राम धनाश्री




जनम तौ बादिहिं गयौ सिराइ।
हरि-सुमिरन नहिं गुरु की सेवा, मधुवन बस्‍यौ न जाइ।
अब की बार मनुष्‍य-देह धरि, कियौ न कछू उपाइ।
भटकत फिरयौ स्‍वान की नार्इ नैकु जूठ कैं चाह।
कबहूँ न रिझए लाल गिरिधरन, विमल-बिमल जस गाई।
प्रेम सहित पग बाँधि घूँघरू सक्‍यौ न अंग नचाइ।
श्री भागवत सुनी नहिं स्त्रवननि नैंकहुँ रुचि उपजाइ।
आनि भक्ति करि, हरि-भक्तिनि के कबहुँ न धोए पाइ।
अब हौं कहा करौं करुनामय, कीजै कोन उपाइ।
भव-अंबोधि, नाम-निज-नौका, सूरहिं लेहु चढ़ाइ।।155।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः