कौन कान्ह, को तुम, कह माँगत
नौकैं करि सबकौं हम जानतिं, बातैं कहत अनागत।।
छाँड़ि देहु हमकौ जनि रोकहु, बृथा बढा़वत रारि।
जैहै बात दूरि लौं ऐसी, परि है बहुरि खँभारि।।
आजुहिं दान पहिरि ह्याँ आए, कहा दिखाबहु छाप।
सूर स्याम वैसैंहिं चलौ, ज्यौं चलत तुम्हारौ बाप।।1507।।