कान्ह कहत, दधि-दान न दैहो।
लैहौं छीनि दूध दधि माखन, देखति ही तुम रैहौ।।
सब दिन कौ भरि लेउँ आजु हीं, तब छाड़ौं मैं तुमकौ।
उघटति हौ तुम मातु-पिता लौं, नहि जानति हौ हमकौ।।
हम जानति हैं तुमकौं मोहन, लै-लै गोद खिलाए।
सूर स्याम अब भए जगाती, वै दिन सब बिसराए।।1508।।