बात कहति ग्वालिनि इतराति।
हम जानी अब बात तुम्हारी, सूधैं नहिं बतराति।।
यहै बडो दुख गाउँ-बास कौ, चीन्हैं कोउ न सकात।
हरि माँगत हैं दान आपनौ, कहति माँगि किन खात।।
हाट-बाट सब हमहिं उगाहत, अपनौ दान जगात।
सूर दान कौ लेखौ दीजै, कोउ न कहै पुनि बात।।1506।।