बात कहति ग्‍वालिनि इतराति -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग धनाश्री


बात कहति ग्‍वालिनि इतराति।
हम जानी अब बात तुम्‍हारी, सूधैं नहिं बतराति।।
यहै बडो दुख गाउँ-बास कौ, चीन्‍हैं कोउ न सकात।
हरि माँगत हैं दान आपनौ, कहति माँगि किन खात।।
हाट-बाट सब हमहिं उगाहत, अपनौ दान जगात।
सूर दान कौ लेखौ दीजै, कोउ न कहै पुनि बात।।1506।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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