कैसैं जल भरन मैं जाउं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सोरठ


कैसैं जल भरन मैं जाउँ।
गैल मेरौ परयौ सखि री, कान्‍ह जाकौ नाउँ।।
घर तैं निकसत बनत नाहीं, लोक-लाज लजाउँ।
तन इहाँ, मन जाइ अँटक्‍यौ, नंद-नंदन-ठाउँ।।
जौ रहौं घर बैठि कै तौ, रह्यौ नाहिंन जाइ।
सीख तैसी देहु तुमहीं, करौं कहा उपाइ।।
जात बाहिर बनत नाहीं, घर न नैकु सुहाइ।
मोहिनी मोहन लगाई, कहति सखिनि सुनाइ।।
लाज अरु मरजाद जिय लौं, करति हौं यह सोच।
जाहि बिनु तन प्रान छाँड़े, कौन बुधि यह पोच।।
मनहिं यह परतीति आनी, दूरि करिहौं दोच।
सूर प्रभु हिलि मिलि रहौंगी, लाज डारौं मोच।।1453।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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