कहा कहौं सखी कहत बनैं नहिं -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग आसावरी


कहा कहौं सखी कहत बनैं नहिं, नंद-नँदन-मेरौ मन जु हरयौ।
मात-पिता-पति-बंधु-सकुच तजि, मँगन भई नहिं सिंधु तरयौ।।
अरुन-अधर, जुग नैन रुचिर रुचि, मदन मुदित मन संग लरयौ।
देह-दसा कुल-कानि-लाज तजि, सहज सुभाउ रह्यौ सु धरयौ।।
आनंद-कंद चंद-मुख निसि दिन अवलोकन यह अमल परयौ।
सूरदास प्रभु-सौं मेरी गति, जनु लुब्‍धक-कर मीन चरयौ।।1454।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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