सुनहु सखी री वा जमुना-तट।
हौं जल भरति अकेली पनिघट, गही स्याम मेरी लट।।
लै गगरी सिर, मारग डगरी, उन पहिरे पीरे पट।
देखत रूप अधिक रुचि उपजी, काछ बनी किंकिनि-रट।।
फूल हिऐं ग्वालिनि कैं ज्यौं रन जीते फिरै महाभट।
सूर लह्यै गोपाल-अलिंगन, सुफल किये कंचन-घट।।1452।।