कहा करौ बिधि हाथ नही -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


कहा करौ बिधि हाथ नही।
वह सुख यह तनु दसा हमारो, नैननि की रिस मरन मही।।
अंग अंग कौनी बिधि बनए, द्वै नैना देखति जबही।
ऐसौ कौन ताहिं धरि आके, कहा करौ खीझत मनहीं।।
बड़ौ सुजान चतुरई नीको, जगतपिता कहियत सबही।
‘सूर’ स्याम अवतार जानि ब्रज, लोचन बहु न दिये हमहीं।।1848।।

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