जौ बिधना अपबस करि पाऊ।
तौ सखि कह्यौ होइ कछु तेनौ, अपनी साध पुराऊँ।।
लोचन रोम-रोम-प्रति माँगौ, पुनि पुनि त्रास दिखाऊँ।
इकटक रहै पलक नहिं लागै,पदति नई चलाऊँ।।
कहा करो छबि-रासि स्यामघन, लोचन द्वै नहिं ठाऊँ।
एते पर ये निमिष ‘सूर’ पुनि, वह दुख काहि सुनाऊँ।।1847।।