कहत कान्ह नँद बाबा आवहु -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदार


कहत कान्ह नँद बाबा आवहु।
भोजन परसि धरे सब आगैं, प्रेम-सहित गिरिराज मनावहु।।
और नंद उपनंद बुलाए, क्ह्यौ सबनि सौं भोग लगावहु।
सुपने मैं देख्यौ इहिं मूरति, यहै रूप धरि ध्यान धियावहु।
इक मन, इक चित अरपित करिकै, प्रगट देव-दरसन तुम पावहु।
सूर स्याम कहि प्रकट सबनि सौं, अपनैं कर लै क्यौं न जिंवावहु।।835।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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