बिनती करत सकल अहीर।
कलस भरि-भरि ग्वाल लै-लै, सिखर ढारत छीर।।
चल्यौ बहि चहुँ पास तैं पय, सुरसरी जल ढारि।
बसन-भूषन लै चढ़ाए, भीर अति नर-नारि।।
मूंदि लोचन भोग अरप्यौ, प्रेम सौं रचि थार।
सबनि देखी प्रगट मूरति, सहज भुजा पसार।।
रुचि सहित गिरि सबनि आगैं, करनि लै-लै खाइ।
नंद-सुत महिमा अगोचर, सूर क्यौं कहि जाइ ।।836।।