चढ़ि विमान सुर-गन नभ देखत।
लीला करत स्याम नूतन यह, फिरि गिरि तन पेखत।
थकित भए सब जहँ तहँ मुनि-जन ठौर-ठौर नर-नारि।
चितै रहे सब स्याम-बदन-तन, गति मति सुरति बिसारि।।
पूजा मेटि इंद्र की पूजत, गोबर्धन-गिरिराज।
सूरदास सुरपति गर्बित भयौ, मैं देवनि सिर-ताज।।834।।