करि गए थोरे दिन की प्रीति।
कहँ वह प्रीति कहाँ यह बिछुरनि, कहँ मधुबन की रीति।।
अब की बेर मिलौ मनमोहन, बहुत भई बिपरीति।
कैसै प्रान रहत दरसन बिनु, मनहु गए जुग बीति।।
कृपा करहु गिरिधर हम ऊपर, प्रेम रह्यौ तन जीति।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे मिलन बिनु, भई भुस पर की भीति।। 3184।।