बातनि सब कोउ जिय समुझावै ।
जिहिं बिधि मिलनि मिलै वै माधौ, सो बिधि कोउ न बतावै ।।
जद्यपि जतन अनेक सोचि पचि, त्रिया मनहि बिरमावै ।
तद्यपि हठी हमारे नैना और न देख्यौ भावै ।।
बासर निसा प्रानबल्लभ तजि, रसना और न गावै ।
'सूरदास' प्रभु प्रेमहिं लगि कै, कहिऐ जो कहि आवै ।। 3183 ।।