ऐसे मैं सुध्यौ न करै, अति निठुलाई धरै,
उनै उनै घटा देखौ पावस की आई है।
चहुँ दिसि घोर मोर लागी है मदन रौर,
पिक की पुकार उर आर सी लगाई है।।
दामिनि की दमकनि, बूँदनि की झमकनि,
सेज की तलफ कैसे जीजियतु माई है।
लागे है बिखारे बान, स्याम बिनु जुग जाम,
घायल ज्यौ घूमै मनौ बिषहर खाई है।।
मिटै न जिय कौ सूर, जात है जोवन फूल,
घरी घरी पल पल बिरह सताई है।
जगत के प्रभु बिनु कल न परति छिनु,
ऐ रे पापी पिय तोहिं पीर न पराई है।। 140 ।।