अब मेरे नैननि ही झरि लाई, बालम कान्ह विदेसी।
तब तौ निबही बाल सनेही, अब निबहे धौ कैसी।।
घर घर सखी हिंडोला झूलै, गावै गीत सुदेसी।
हम अधीन व्याकुल भइ डोलै, बनी जोगिनी भेषी।
भरि गई ताल तलैया सागर, बोलन लागे देसी।
'सूरदास' प्रभु तुम्हरे दरस कौ, को घर सहै अँदेसी।। 141 ।।