मरियत देखिबे की हौंसनि -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

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राग रामकली




मरियत देखिबे की हौंसनि।
जिनि सत कलप पलक सम जाते, अब सो रही दुख मैं सनि।।
पलक भरे की ओट न सहती, अब लागे दिन जानि।
इतनैहू पर बिनु साखन घर, तट निकसत नहिं प्रान।।
जदपि मोहिं बहुते समुझावत, सकुचनि लीजत मान।
अंतहकरन जरत बिनु देखै, कौन बुझावै आन।।
कुबिजा पै आवन क्यौ पावत, अब तौ परिहै जानि।
लीन बड़ी यहऊँ की बातै पाछिलि वै सब गानि।।
आए ‘सूर’ दिना द्वै तौ कहा, तौ मानिबौ समोसो।
कोटि बेर जल औटि सिरायै, तऊ कहा पति लोसो।। 139 ।।

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