तातै तुम्‍हरौ भरोसौ आवै -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग सारंग




तातै तुम्‍हरौ भरोसौ आवै।
दीनानाथ पतित-पावन, जस बेद-उपनिषद गावै।
जौ तुम कहौ कौन खल तारयौ, तौ हौं बोलौं राखी।
पुत्र-हेत सुर लोक गयो द्विज, सक्‍यौ न कोऊ राखी।
गनिका किए कौन ब्रत-संजम, सुक-हित नाम पढ़ावै।
मनसा करि सुमिरयौ गज बपुरै, ग्राह प्रथमगति पावै।
बकी जु गई घोष मैं छल करि, जसुदा को गति दीनी।
और कह त सत्रुति, वृषभ-ब्‍याध की जैसी गति तुम कीनी।
द्रुपद-सुताहिं दुष्‍ट दुरजोधन सभा माहिं पकरावै।
ऐसौ और कौन करुनामय, बसन-प्रवाह बढ़ावै।
दुखित जानिकै सुत कुबेर के तिन्‍ह लगि आपु बँधावै।
ऐसौ को ठाकुर, जन-कारन दुख सहि, भलौ मनावै।
दुरबासा दुरजोधन पठयौ पांडव-अहित बिचारी।
साक पत्र लै सबै अघाए, न्‍हात भजे कुस डारी।
देवराज मष-भंग जानि कै बरष्‍यौ ब्रज पर आई।
सूर स्‍याम राखे सब निज कर, गिरि लै भए सहाइ।।।122।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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