सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग
आप दीनों के स्वामी हैं, पतितों को पवित्र करने वाले हैं - ऐसा आपका सुयश वेद और उपनिषद् गान करते हैं; इसीलिये आप पर भरोसा होता है यदि आप कहें कि ‘मैंने किस दुष्ट का उद्धार किया?’ मैं साक्षी (प्रमाण) बतला रहा हूँ। पुत्र के बहाने आपका नाम लेकर ब्राह्मण (अजामिल) स्वर्ग (वैकुण्ठ) चला गया, (पापी होने पर भी) कोई उसे रोक नहीं सका। गणिका ने कौन-सा व्रत या संयम किया था, वह तोते को पढ़ाने के लिये आपका नाम लेती थी (उसी से वह तर गयी)। बेचारे गजराज ने तो मन से आपका स्मरण किया था (उसका उद्धार तो ठीक ही था), परंतु (उसे पकड़ने वाले) ग्राह ने पहले सद्गति पायी। पूतना गोकुल में छल करके (आपको मारने) गयी थी, उसे (आपने) माता यशोदा की गति प्रदान की। आपने वृषभासुर, व्याध आदि को जैसे परम गति दी, उसका वर्णन भी वेद करते ही हैं। दुष्ट दुर्योधन ने (दुःशासन के द्वारा) द्रौपदी को बीच सभा में पकड़ मँगाया; किंतु आपके समान दूसरा ऐसा करुणामय कौन होगा, जिन्होंने उसके वस्त्र को प्रवाह के समान (अनन्तरूप से) बढ़ा दिया। (यमलार्जुन बने) कुबेर के पुत्रों को दुखी जानकर, उनके (उद्धार के) लिये अपने आपको आपने (ऊखल से) बँधवाया। भला, ऐसा कौन स्वामी होगा, जो सेवक के लिये स्वयं दुःख सहकर उसका भला चाहे। दुर्योधन ने पाण्डवों का अहित सोचकर दुर्वासा मुनि को (वन में पाण्डवों के पास) भेजा था, किंतु आपने शाक का एक पत्ता खाकर सबको (शिष्यों के साथ दुर्वासा जी को) तृप्त कर दिया, वे स्नान करते हुए (कहीं चक्र पीछे न लग जाय, इस भय से) कुश फेंक कर (बिना संध्या किये ही) भाग गये। देवराज इन्द्र ने अपने यश का भंग जान कर (मेघों के साथ) स्वयं व्रज पर आ कर प्रलय वृष्टि प्रारम्भ कर दी; किंतु सूरदास जी कहते हैं कि श्याम सुन्दर गिरिराज (गोवर्धन) को अपने हाथ पर उठा कर (व्रज के लोगों के) सहायक हो गये, उन्होंने सबकी रक्षा कर ली। |
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