सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग देवगंधार
अरे मन! निरन्तर हरि-हरि की रट लगा दे। यह दृढ़ विश्वास कर ले कि भगवन्नाम के समान कोई सात्त्विक यज्ञ नहीं है। हिरण्यकशिपु ने हरिनाम का विस्मरण कर दिया, अतः वह तुरंत भस्म हो गया (मारा गया)। जिस प्रभु ने प्रह्लाद की रक्षा के लिये उस असुर को मारा, उस प्रभु से सदा डरता रह। (भगवान् का भजन करने से) गजराज, गृध्रराज जटायु, गणिका और व्याध के पाप तत्काल नष्ट हो गये। इसलिये (प्रभु के) चरणकमलों का प्रेमरूपी रस अपने बुद्धिरूपी बर्तन में पूर्णतः भर ले। द्रौपदी की लज्जा-रक्षा के लिये प्रभु तत्काल दौड़ पड़े और पाण्डवों के समस्त विघ्न भी उन्हीं प्रभु की कृपा से टलते ही गये। कर्ण, दुर्योधन, दुःशासन, शकुनि आदि पाण्डवों के न जाने कितने शत्रु मारे गये। अजामिल ने पुत्र को पुकारने के लिये नारायण नाम लिया और उसी से देखते-देखते मुक्त हो गया। प्रभु चारों फलों के दाता हैं, वे कल्पवृक्षरूप हैं और चारों पदार्थ फले हुए हैं। सूरदास जी कहते हैं कि श्रीगोपाल को निरन्तर हृदय में धारण किये रह। |
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