सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग बिलावल
जिसके स्वामी श्रीराम है, उसे कमी क्या है। वे सुखनिधान प्रभु अपने संकल्पमात्र से सभी मनोरथों को पूर्ण कर देने वाले हैं। उनकी उदारता की उमंग अपार है। वे परम उदार अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष-चारों पुरुषार्थ प्रदान करते हैं। इन्द्र के समान देवराज जिसके सेवक हैं, (उस प्रभु की तुलना मे) बेचारे मनुष्य की उदारता कितनी। जो (सभी वस्तुओं को) ‘अपनी-अपनी’ कहता फिरता है (सबमें ममता बाँधे है), ऐसे कृपण (मनुष्य) की सम्पत्ति की क्या गणना की जाय। वह न तो उसका उपभोग कर सकता है, न व्यय करना जानता है। जैसे सर्प के सिर पर मणि रहती है (वैसे ही उसकी सम्पत्ति भ्ज्ञी उसके लिये भाररूप ही है)। दुः,ख और संताप (तीनों तापों) का बन्धन काटकर (मनुष्य को) आनन्द में मग्न होकर श्रीराम का गुणगान ही करना चाहिये। सूरदास जी कहते हैं कि जो श्रीराम का भजन करते हैं, उनमें और श्रीहरि में सदा प्रेम रहता है। |
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