सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग केदारौ
(204) हे करुणामय! यदि आप ही अपने (पतित-पावन) सुयश को विस्मृत कर दें तो कहिये कर्म का मारा (भाग्यहीन) यह कृपण कहाँ (किसकी शरण में) जाय? चारों वेद आपका सुयश वर्णन करते हैं कि आप दीन-दयाल और पतित-पावन हैं। पुराणों में यह कथा भी सुनी जाती है कि आपने गणिका, व्याध और अजामिल (जैसे पापियों) का उद्धार किया है। प्रेम से, द्वेष से, विधिपूर्वक या बिना किसी विधि के, अपवित्र दशा में या पवित्र होकर (किसी भी प्रकार से) जिस किसी ने जहाँ कहीं भी हे प्रभु! आपका स्मरण किया, आपने वहीं बड़े आदर से (तत्परता से) उसके शोक को दूर किया, कभी भी (इसमें) हे कृपानिधि! आपने विलम्ब नहीं किया। हे श्रीहरि! आपके अगणित गुण और अगणित नाम हैं। अब भी आप अपनेपन (पतित-पावन स्वरूप) को धारण कीजिये (मेरा उद्धार कीजिये)! सूरदास जी कहते हैं- हे स्वामी! आपका यह सेवक तो अब परिश्रम करते-करते हार गया (थक गया) है। |
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