सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग
(303) सब (सांसारिक आसक्तियाँ) छोड़ कर श्री नन्दनन्दन का भजन करना चाहिये। दूसरे किसी (देवता) का भजन करने से काम पूरा नहीं होगा- संसार रूपी जंजाल मिटेगा नहीं। जिस-जिस योनि में जन्म लिया, उसी में पापों का बोझ मैंने बटोरा। उसे (पाप भार को) काटने में केवल श्री हरि का नाम रूप तीक्ष्ण धार वाला कुल्हाड़ा ही समर्थ है। वेद, पुराण, भागवत, गीता, सबके (सभी शास्त्रों के) मत (सिद्धान्त) का सार (निचोड़) यही है कि श्री हरि के चरण कमल रूपी नौका के बिना संसार रूपी समुद्र से कोई पार नहीं उतर सकता। यह बात हृदय में समझ कर इसी क्षण से भजन प्रारम्भ कर दे, (जीवन के) दिन निःसार (व्यर्थ) बीते जा रहे हैं सूरदास जी कहते हैं कि यह समय (मनुष्य-जन्म) पा कर इसका लाभ उठा ले, (अन्यथा) संसार में ऐसा अवसर (मनुष्य-जीवन) फिर दुर्लभ हो जायागा।
|
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पृष्ठ संख्या |