सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग धनाश्री
(258) सुना है कि आप दीनों पर दया करने वाले तथा (उन्हें) अभय दान देने वाले हैं। आपके सभी सुयश सच्चे हैं। आप ही संसार के पिता एवं माता हैं। व्याध, गीध (जटायु), गणिका और गजराज- इनमें भला, ज्ञानी कौन था? लेकिन स्मरण करते ही आप उनके पास आ गये, यह बात त्रिभुवन में प्रसिद्ध है। आपने दुष्ट केशी और कंस को मारा, मुष्टिक का संहार किया, गजराज के लिये दौड़ पड़े- यह सब (निग्रह और अनुग्रह की) बात आपके लिये कितनी है? (आपके लिये तो इनका कोई महत्त्व ही नहीं है।) (सुदामा के) चिउड़े खाते ही (उन्हें) आपने तीनों लोकों का ऐश्वर्य दे दिया। हे स्वामी! आप तो एक तुलसीदल से प्रसन्न हो कर सर्वस्व दे देते हैं आपके चरणों का तनिक-सा स्पर्श होते ही गौतम मुनि की पत्नी अहल्या तर गयी। हे कृपा के स्वामी! बताइये तो कि आपके लिये उद्धार करने को और बचा कौन है? जिस तमोगुण से उसका मन रँगा हुआ है, उसे त्याग कर सूरदास आपसे यही माँगता है- हे नाथ! मुझे अपनी भक्ति दीजिये, जिससे आपके साथ सम्बन्ध स्थापित हो जाय। |
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