सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग गौरी
(205) मेरे स्वामी! मेरे-जैसे पतित का उद्धा कीजिये। मैं कामी, कृपण, कुटिल, अपराधी और पाप के भारी भार से भरा हुआ हूँ। कज्जल से भी अधिक काला (मलिन) हूँ। तीनों अवस्थाओं (बालकपन, किशोरावस्था और तरुणावस्था) में मैंने भक्ति नहीं की। अब (बुढ़ापे में) आपकी शरण में आया हूँ, जैसे आप उचित समझें वैसे ही मेरा उद्धार करें। गीध, व्याध, गजराज, गणिका आदि ने आपका नाम ले-लेकर अपना उद्धार कर लिया। सूरदास जी कहते हैं- हे स्वामी! कृपालु होकर आप मुझे भी अपने भक्तों में सम्मिलित कर लीजिये। |
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