सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग
जिस पर दीनानाथ प्रभु कृपा करते हैं, वह कभी भी संसार-सागर में नहीं गिरता। उसकी निर्भयता की दुन्दुभि बजा करती है। (प्रभु ने) विप्रवर सुदामा को अटूट सम्पत्तियाँ दे दीं, महाभारत के युद्ध में अर्जुन गर्जते रहे (विजयी हुए), विभीषण लंका के राजसिंहासन पर सुशोभित हुए, ध्रुव जी को आकाश में (अचल) पद प्राप्त हुआ, केशी, कंस आदि (असुरों को) मारकर मथुरा में सारी दुर्व्यवस्था नष्ट कर दी, उग्रसेन के सिरपर छत्र धारण कराया (उन्हें राजा बना दिया), राक्षस वहाँ से दसों दिशाओं में भाग गये, वस्त्र खींचे जाने के समय द्रौपदी की जल्ला बचा ली, उलटे वहाँ अंधे राजा धृतराष्ट्र के पुत्रों को ही (साड़ी खींचने में भी असमर्थ होने के कारण) लज्जित होना पड़ा! सूरदास जी कहते हैं कि हमारे स्वामी केवल महान् भक्ति से (प्रसन्न होकर) उत्तम और निम्न-सभी जाति के भक्तों को श्रेष्ठ बना देते हैं। |
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