सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग सारंग
हे माधव जी! मुझसे बड़ा और कोई पापी नहीं है। मै हत्यारा, कुटिल, चुगलखोर, कपटी, अत्यन्त क्रूर तथा सबको कष्ट देने वाला, लम्पट, धूर्त, दमड़ी का पुत्र (अत्यन्त लोभी) और विषय-भोगों के जप को ही जपने वाला (सदा विषय-भोगों की चर्चा और चिन्तन करने वाला) हूँ। अभक्ष्य पदार्थ खाकर और न पीने योग्य (शराब आदि) पीकर कभी भी मन से तृप्त नहीं हुआ (सदा उनकी लालसा बनी रही)। कामी हूँ, स्त्री सुख के सदा वश में रहा और लोभ तथा तृष्णा की स्थापना (पोषण) करता रहा। सभी के लिये मन, वाणी तथा कम से दुस्सह हूँ (मेरे द्वारा सबको सब प्रकार से कष्ट ही होता है) तथा कड़वी बात कहने वाला हूँ। हे प्रभु! आपने जितने पापियों का उद्धार किया है, उनकी गति (स्थिति) तो मेरी नामी हुई है। व्याघ ओर अजामिल तो बावली के समान (छोटे) पापी थे और सूरदास तो विकारों (पापों) के जल से भरा समुद्र है। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पृष्ठ संख्या |