सूर विनय पत्रिका
अनुवादक - सुदर्शन सिंह
राग विहाग
यदि मन कभी श्रीहरि की ही याचना करे (केवल भगवान् को ही चाहे), दूसरों की चर्चा और उपासना का त्याग कर दे तथा मन, वाणी एवं कर्म से अपने अन्तर में सच्चा रहे (एकमात्र श्रीहरि में निष्ठा रखे), रात-दिन श्यामसुन्दर का स्मरण करे और (उनके ही) यश का गान करे, (अन्य) कल्पनाओं को छोड़कर (भगवत्) प्रेम के रस में ही निमग्न रहे, संसार में प्रेम का ही व्रत लेकर विचरण करे, महामणि और काँच को समान समझे, शीत-उष्ण, (सर्दी-गर्मी) सुख-दुःख न माने (इनसे प्रभावित न हो), हानि-लाभ की चिन्ता में तनिक भी न डूबे, तो सूरदास जी कहते हैं कि (वह) उस निधि (भगवान् के आनन्दमय रूप) में जाकर मिल जायगा, फिर लौटकर उसे संसार में जन्म (नाना प्रकार के स्वाँग धरकर नाचना) नहीं लेना पड़ेगा। |
संबंधित लेख
क्रम संख्या | पद | पृष्ठ संख्या |